रारह ग्राम पंचायत भरतपुर के प्राचीनतम ग्राम पंचायतो में से एक है| रारह शब्द का अर्थ है – रा का अर्थ है लक्ष्मी एवं रह का अर्थ है निवास, अर्थात लक्ष्मी का निवास। इस प्रकार लक्ष्मी के निवास के नाम पर इस गांव का रारह है।
प्राचीन काल में यहाँ मुगलों का शासन था, तत्पश्चात कसेरे जाति ने मुगलों को हराकर यहाँ राज्य किया | उनके बाद भारत की आजादी तक जाट वंश का यहाँ शासन रहा। यहाँ पर एक किद्वंती के अनुसार कहा जाता है कि “गुनसारे” गांव से आये तीन जाटों ने इस गांव में जाट वंश की नींव रखी थी।
एक अन्य किद्वंती के अनुसार भरतपुर के संस्थापक जाट वंश के महाराजा सूरजमल के समय में एक सैनिक के कार्य से प्रसन्न होकर महाराजा सूरजमल ने इनाम के तौर पर उसे रारह गाँव दिया | साथ में यह भी कहा की दिनभर में जितनी भूमि पर तुम अपना घोड़ा दौड़ाओगे वहाँ तक तुम्हारे गांव की बसावट की जाएगी, परन्तु उसने केवल आधे दिन तक की अपना घोड़ा केवल आधे दिन तक ही दौड़ाया, और आज उसी जगह रारह ग्राम पंचायत है|
पूर्वकाल से ही यहाँ पर सर्वसम्मिति से फैसले लेने की परंपरा है या फिर यो कहे की पंचायती व्यवस्था यहाँ वर्षो पुरानी है| सर्वप्रथम सरपंचों के चुनावों में श्री जगन्नाथ जी ने सरपंच का चुनाव लड़ा । उस समय गांव रारह, सांतरुक एवं ताखा की एक ही ग्राम पंचायत होती थी तथा प्रथम सरपंच श्री जगन्नाथ जी चुने गये थे |
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