पशु चिकित्सा केन्द् पर दी जाने वाली सुविधाएंः
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पी एच सी) ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल की आधारशिला हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उनके उपकेंद्रों से ग्रामीण जनता की स्वास्थ्य जरुरतों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा 1,00,000 जनता की देखभाल की जाती है। प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र की देखभाल एक चिकित्सा अधिकारी, ब्लॉक विस्तार शिक्षक, एक महिला स्वास्थ्य सहायक, एक कम्पाउडर, एक ड्राइवर और प्रयोगशाला तकनीशियन द्वारा की जाती है। यह एक जीप और छोटी शल्य क्रियाएं करने के आवश्यक सुविधाओं से सज्जित है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना व देखभाल राज्य सरकारों द्वारा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एमएनपी) और बुनियादी न्यूनतम सेवाएं कार्यक्रम (बीएमएस)। वर्तमान में एक चिकित्सा अधिकारी की सहायता 14 पैरा मेडीकल कार्मिकों द्वारा की जाती है। 6 उप केन्द्रों के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, रेफरल यूनिट के रूप में कार्य करता है। इसमें रोगियों के लिए 4-6 बिस्तर होते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की गतिविधियों में रोगनाशक, निवारण, पुरातन (प्रीमीटिव) और परिवार कल्याण सेवाएं सम्मिलित हैं। सितम्बर 2004 में 23109 की तुलना में सितम्बर 2005 तक 23236 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र देश में कार्य कर रहे हैं।
चिकित्साकर्मी
सुविधायें ः
जलदाय विभाग, ग्राम पंचायत रारह के कार्य ः
अगर FIR और अपने अधिकारों के बारे में आपको नहीं है पूरी जानकारी, तो पढ़िये...
कचहरी, अस्पताल और पुलिस स्टेशन, ये तीन ऐसे स्थान हैं जहाँ जीवन में एक बार ही सही हर आदमी का पाला कभी ना कभी जरूर पड़ता है। पुलिस थाने का नाम सुनते ही पुलिस का खौफनाक चेहरा लोगों के सामने आने लगता है। अमूमन आपने सुना होगा कि पुलिस ने दबाव बनाकर FIR ( first information report) बदल दी है। पुलिस आम नागरिकों द्वारा कानून की कम जानकारी होने का फायदा उठाती है।
किसी भी अपराध की रिपोर्ट पुलिस को दर्ज करवाने के लिए जैसे ही आप थाने में जाते हैं, तो आपको अपने साथ घटे अपराध की जानकारी देने को कहा जाता है। इसमें अपराध का समय, स्थान, मौके की स्थिति इत्यादि की जानकारी पूछी जाती है।
यह सारी जानकारी डेली डायरी में लिखी जाती है जिसे रोजनामचा भी कहा जाता है। बहुत से अनजान लोग इसे ही एफआईआर समझ लेते हैं और अपनी तरफ से संतुष्ट हो जाते हैं। इसलिए जब भी अपराध की रिपोर्ट दर्ज करवाएं एफआईआर लिखवाएं और इसकी कॉपी लें, यह आपका अधिकार है। एफआईआर दर्ज करने में लापरवाही और देरी के लिए भी आप जिम्मेदार अधिकारी की शिकायत कर सकते हैं। एफआईआर की पहचान के लिए इस पर एफआईआर नंबर भी दर्ज होते हैं जिससे आगे इस नंबर से मामले में प्रक्रिया चलाई जा सके। अहम बात यह की FIR पंजीकृत करने के लिए किसी भी प्रकार की फीस नहीं लगती, यदि पुलिस अधिकारी इसकी मांग करता है तो तुरंत उसकी शिकायत बड़े पुलिस अधिकारियों को करें।
FIR करवाते समय इन बातों का रखें ध्यान...
एफआईआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट तुरंत दर्ज करवाएं। यदि किसी कारण से देर हो जाती है तो फॉर्म में इसका उल्लेख करें। यदि शिकयत मौखिक रूप से दे रहे हैं तो थाना प्रभारी आपकी शिकायत लिखेगा और समझाएगा। कार्बनशीट से शिकायत की चार कापियां होनी चहिये। शिकायत को सरल और विशिष्ट रखें। तकनीकी के तहत जटिल शब्दों का प्रयोग न करें। ध्यान रखें कि आपके आगमन और प्रस्थान का समय एफआईआर और पुलिस स्टेशन के डेली डायरी में अंकित हो गया है।
FIR में दें यह जानकारी...
ये सभी प्रक्रिया होने पर शिकायत को ध्यान से पढ़ें और उसके बाद उस पर दस्तखत कर दें। थाना प्रभारी इसे अपने रिकॉर्ड में रखेगा। शिकायतकर्ता का ये अधिकार है कि इसकी एक कॉपी उसे भी मिले। इसके लिए कोई फीस या शपथ पत्र देने की ज़रुरत नहीं है।
ऑनलाइन FIR...
अब शिकायत करने के लिए पुलिस थाने जाने की जरूरत नहीं रही। आप ऑनलाइन अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर थाना प्रभारी आपको फोन करेगा जिसके बाद आप अपनी शिकायत की स्थिति को ऑनलाइन ही ट्रैक कर सकते हैं। ऑनलाइन शिकायत करने के लिए आपको अपना ई-मेल और टेलीफोन नंबर भी दर्ज कराना होगा जिससे पुलिस आपको संपर्क कर सके।
सर्वोच्च न्यायालय ने बताया अनिवार्य...
सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी यानि की एफआईआर दर्ज करने को अनिवार्य बनाने का फैसला दिया है। एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश भी न्यायालय ने दिया है। न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि एफआईआर दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर प्राथमिक जांच पूरी की जानी चाहिए। इस जांच का मकसद मामले की पड़ताल और गंभीर अपराध है या नहीं जांचना है। इस तरह पुलिस इसलिए मामला दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है कि शिकायत की सच्चाई पर उन्हें संदेह है।
ये है आपका अधिकार...
संज्ञेय अपराध के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। एफआईआर की कॉपी लेना शिकायकर्ता का अधिकार है। इसके लिए मना नहीं किया जा सकता है। संज्ञेय अपराध की एफआईआर में लिखे गए घटनाक्रम व अन्य जानकारी को शिकायकर्ता को पढ़कर सुनाना अनिवार्य है। आप सहमत हैं, तो उस पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। यह जरूरी नहीं कि शिकायत दर्ज करवाने वाले व्यक्ति को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या फिर उसके सामने ही अपराध हुआ हो। एफआईआर में पुलिस अधिकारी स्वयं की ओर से कोई भी शब्द या टिप्पणी नहीं जोड़ सकता है।
कई बार पुलिस एफआईआर दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर देती है, जबकि होना यह चाहिए कि पहले एफआईआर दर्ज हो और फिर जांच-पड़ताल। घटना स्थल पर एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप एफआईआर की कॉपी नहीं ले पाते हैं, तो पुलिस आपको एफआईआर की कॉपी डाक से भेजेगी। आपकी एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई इस बारे में संबंधित पुलिस आपको डाक से सूचित करेगी। अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है।
FIR दर्ज नहीं करें तो करें ये काम...
अगर थाना प्रमुख आपकी शिकायत की एफआईआर दर्ज नहीं करता है या मना करता है, तो आप अपनी शिकायत रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को भेज सकते हैं। उपायुक्त आपकी शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर सकता है। इसके अलावा एफआईआर नहीं दर्ज किए जाने की स्थिति में आप अपने क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट के पास पुलिस को दिशा-निर्देश के लिए कंप्लेंट पिटीशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के भीतर केस दर्ज कर आपको एफआईआर की कॉपी उपलब्ध करवाए। मैजिस्ट्रेट के आदेश पर भी पुलिस अधिकारी समय पर शिकायत दर्ज नहीं करता है या फिर एफआईआर की कॉपी उपल्बध नहीं करवाता है, तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई और जेल भी हो सकती है।
ये भी हैं काम की बातें...
एफआईआर की कॉपी पर उस पुलिस स्टेशन की मुहर और थाना प्रमुख के हस्ताक्षर होने चाहिए। एफआईआर की कॉपी आपको देने के बाद पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में लिखेगा कि सूचना की कॉपी शिकायतकर्ता को दे दी गई है। आपकी शिकायत पर हुई प्रगति की सूचना संबंधित पुलिस आपको डाक से भेजेगी। आपको और पुलिस को सही घटना स्थल की जानकारी नहीं है, तो भी चिंता की बात नहीं। पुलिस तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर देगी। हालांकि जांच के दौरान घटना स्थल का थानाक्षेत्र पता लग जाता है तो संबंधित थाने में केस को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। एफआईआर दर्ज करवाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अगर आपसे कोई भी एफआईआर दर्ज करवाने के नाम पर रिश्वत, नकद की मांग करे, तो उसकी शिकायत करें।
सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली सुविधाएं ः
उपतहसील कार्यालय पर उपलब्ध सुविधाएं : तहसीलदारों के कर्तव्य एवं नागरिकों के अधिकार
1. राजस्व अभिलेखों की नकल प्राप्त करना
काश्तकार द्वारा एल.आर. नियम 28 के अनुसार तहसील में निर्धारित शुल्क जमा कराकर राजस्व अभिलेखो की नकल निम्न प्रकार से प्राप्त कर सकता है।
2. रास्तों में विवाद
काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 251 के अन्तर्गत रास्तों के वादों के निस्तारण हेतु संबंधित काश्तकार द्वारा तहसीलदार को आवेदन करना होगा. इन प्रार्थना पत्र के निस्तारण हेतु निम्न प्रकार से प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
3. सीमा ज्ञान
काश्तकार अपने खेत का सीमांकन/सर्वेक्षण हेतु एल.आर. नियम 34 के अनुसार तहसील कार्यालय में आवेदन कर सकते है. तहसीलदार को आवेदन करने पर निम्नानुसार कार्यवाही की जावेगी।
4. नामान्तरकरण
भू-राजस्व अधिनियम की धारा 135(2) के अनुसार आवंटन के पश्चावर्ती या न्यायालय के आदेश की अनुपालना के क्रम में आवेदन करने पर निस्तारण राजस्व अधिकारी द्वारा निम्न प्रकार से किया जाएगा।
5. जोत विभाजन
राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार सह-खातेदार आपसी सहमति से अपनी जोतों के विभाजन हेतु तहसीलदार के न्यायालय में आवेदन कर सकता है. इसका निस्तारण निम्न प्रकार से किया जाएगा।
6. वृक्षों की कटाई
स्वंय काश्तकार के उपयोग में लाने हेतु अपने खेतों से हरे वृक्ष उन्हे काटने की अनुमति संबंधित तहसीलदार को आवेदन देकर लेनी चाहिए. इसके साथ्ा-साथ काश्तकार को प्रत्येक हटाये गए वृक्ष की एवज में दो वृक्ष लगाना अनिवार्य है।
7. शुद्वि पत्र
खातेदार/गैर खातेदार जिसके खाते में लिपिकीय भूल से अशुद्वि हो गई है वह भू.अ. नियमावली 1957 के नियम 166 के अन्तर्गत साधारण कागज पर आवश्यक दस्तावेज के साथ आवेदन कर सकता है।
8. गैर खातेदारी से खातेदारी अधिकार प्राप्त करना (नोन-कमाण्ड क्षैत्र)
प्रत्येक गैर खातेदार जिसकों भूमि आवंटन हुए 3 वर्ष हो गए हों तथा आवंटन शर्तो की पूर्ण पालना की गई है तों वह साधारण कागज पर खातेदारी अधिकार प्राप्त करने हेतु आवेदन कर सकता है।
9. बैंको आदि से ऋण प्राप्त करने हेतु अदेय प्रमाण-पत्र जारी करना
कोई भी काश्तकार यदि ऋणदाञि संस्थाओं से ऋण प्राप्त करना चाहता है तों इन संस्थाओं की मांग के अनुसार अदेय प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जा सकता है।
10. भूमि रूपान्तरण
ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय/औद्योगिक प्रयोजनार्थ भूमि रूपान्तरण कराने हेतु तहसीलदार को निर्धारित शुल्क के साथ आवेदन करना होगा।
11. विभिन्न्ा प्रमाण-पत्र
वद्वावस्था/विकलांग/विधवा पेंशन, जाति प्रमाण-पत्र/मूल निवास प्रमाण-पत्र/हैसियत प्रमाण-पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन किया जा सकता है. उक्त प्रमाण-पत्र निम्न प्रकार से जारी किए जायेंगे।
शिकायत कहां की जाएः-
तहसील स्तर से उपरोक्त कार्य निर्धारित समय-सीमा में संपादित नहीं होने पर उपखण्ड अधिकारी को शिकायत की जा सकती है. उपखण्ड अधिकारी प्राप्त शिकायत को दर्ज रजिस्टर कर इनका निस्तारण 15 दिवस में करेगा तथा संबंधित शिकायतकर्ता को लिखित में सूचित करेगा. आवश्यक होने पर तहसीलदार के विरूद्व अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारम्भ करेगा।
Copyright © 2013 - All Rights Reserved - Rarah.in
Designed & Website Developed By Media Tech Temple